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प्रयास - अंत से फिर अरंभ ।।

हिन्दी में मेरा पहला प्रयास है, आलोचना का तहें दिल से स्वागत रहेगा और उस आलोचना पे पुरी कोशिश रहेगी ताकी में सुधार ला सकुं । शुक्रवार रात और शनीवार की सुबह में दो अपनों से मेरी बात हुई जिनसे कुछ मन मुठाव थे, कोशीष दोनों तरफ़ कुछ ऐसी हुई की मन कि खटास मिठास में बदल गई। दिल बहुत ख़ुश था पर मन में हज़ार सवाल उठे, जब दोनों तरफ़ भी इन्सान ही थें फिर दानव की तरह क्यों इतने दिन लढ रहे थें, क्या यें क्रोध था या ईर्ष्या थी, जवाब डुढनें में एक रात लग गयी, इस वेदना का मंथन  से जो जवाब आया हैं, वह आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हुँ, जो समझ जायें वो दूध सागर के मंथन का अमृत प्राप्त करने वाले भगवान बन जायेंगे और न समझने वाले, छोढों, कभी ओर उनकी बात करेंगे । अहंकार ( ego )था उस मंथन का जवाब, पर में अहंकारी नहीं हुँ ओर वो भी ख़ुद को नहीं समझता हे, नहीं समझें, में भी पहले समझ नहीं पाया था, ईस उलझन को सुलझाने के लिये में और उलझता रहा, जवाब नहीं मिला, पर एक काम याद आ गया था, जिसके लिये मुझे बेगम बाज़ार जाना था, वहाँ काम के दौरान मेरे हाथ हिन्दी मिलाप हाथ लगा, उसमें प्रस्तुत एक कहानी रामकृष्ण परम...